सोमवार, 12 जनवरी 2015

सदियों को दो आराम


जाओगे कहाँ कोई सत्कर्म करने तुम 
चेहरे पे खिला दो किसी के तुम कोई मुस्कान 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

घर में हों गर माँ-बाप दादा-दादी से बुजुर्ग 
तन-मन से करो सेवा ,अपना जनम सफल 
खिल जायेगा उनकी दुआओं का चमन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

बन कर के किसी पेड़ से , तुम सह लो सारी घाम 
पथिकों को दो छाया , सदियों को दो आराम 
हर ठूँठ पर फूल उगाने का हो जतन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

अपने लिये तो जीता है , हर कोई देख लो 
रुकता है भला कोई काम ,क्या किसी के बिन 
जीवन को भी उपयोगी बनाने की हो लगन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

अन्दर है तेरे भी कोई नन्हा सा बच्चा देख 
खिलखिलाना चाहता है खुल के ,जो तू देख 
सहज सरल रह कर , कुछ भी नहीं कठिन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन