शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

आजाओ मेरे प्रभु जी (गुरु जी )

उतरो मेरे मन में , प्रभु जी
उजली सी किरणें लेकर
तकती हैं मेरी आँखें
भूली हैं सारी राहें
अन्तस में है अँधियारा
दिखता कोई किनारा
जन्मों से बहका तन मन
जलने को है इक उपवन
जाओ मेरे प्रभु जी
ठंडी सी हवाएं लेकर
तेरी ठण्डक देती बाहें
राहत की सारी दवाएँ
महकेगा इक गलियारा
खिल जायेगा इक उजियारा
जिस ओर भी तुम लेजाओ
उंगली अपनी पकड़ाओ