शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

खिजाँ का मौसम

टूटे हुए दिल से भला क्या पाओगे
खिजाँ का मौसम किस तरह निभाओगे

इक कदम भी भारी है बहुत
जंजीरों में उलझ , न चल पाओगे

रुका है वक्त क्या किसी के लिए
सैलाब मगर ठहरा हुआ ही पाओगे

ठण्डी साँसें हैं पुरवाई नहीं
सहराँ की हवाओं में झुलस जाओगे

जीती-जागती बस्ती में मुर्दा है कोई
मरघट में हलचल का पता पाओगे

हमने चरागे-दिल से कहा
सहर तलक जलने की सजा पाओगे

परछाइयों से डरते हो
शबे-गम किस तरह निभाओगे

कतरा-कतरा ग़मों को पीना है
हलक से ज़िन्दगी कैसे उतार पाओगे

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मेरी बात और है

तुम जो चाहे सजा दे लो
मेरी बात और है , मैंने तो मुहब्बत की है

चाँदनी रात का भरम ही सही
दिल जला कर रौशनी की है

रूठ कर बैठा है मेरे घर में कोई
बन्द दरवाजों से मिन्नत की है

जिन्दगी यूँ भी गुजर जाती है
वीरानों से भी दोस्ती की है

हाले-दिल किस को सुनाने लगे
सजा में क्या कोताही की है

सह तो लेते हैं खुदा का करम
आदमी का करम , खुदा की मर्जी ही है

तुम जो चाहे सजा दे लो
मेरी बात और है , मैंने तो मुहब्बत की है