शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

अहसास की स्याही


रिश्तों की अमीरी अक्सर 
आड़े वक्त में अँजुरि से झर जाया करती है
 
न ज़ुदा करना ज़मीन से किसी को 
वरना पनपते नहीं ,जड़ें भी मर जाया करती हैं
 
सलोनी सूरत भी जो गिर जाये नजरों से 
तो दिल से उतर जाया करती है 

लहज़ा बता देता है रिश्ते की गहराई 
यूँ ही नहीं संवेदनाएँ मर जाया करती हैं 

सबको तौल रहे हो एक ही तराजू पर 
ये खुमारी भी वक्त के साथ उतर जाया करती है
 
ऐ मौत के मुसाफिर ,उल्टी गिनती है साँसों की 
ज़िन्दगी पकड़ने की खातिर ही ,उम्र गुजर जाया करती है 

कोई पहलू नहीं रहता अछूता कलम के हाथों से 
अहसास की स्याही पन्नों पर बिखर जाया करती है
 
सूरज तो हरदम है सफर पर अपने 
भर लो मुठ्ठी ,किरणें घर-घर जाया करती हैं 

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

नया साल है ,नई बात हो





नया साल है ,नई बात हो 
नई सुबह है ,करामात हो 
कोविड से पीछा छूटे 
नई फ़िज़ाँ हो ,समाँ साथ हो 

अपने दम पर जीना सीखा 
अपनों का सँग-साथ भी छूटा 
नेट की दुनिया से वाकिफ हर कोई 
बस इक स्मार्ट फोन हाथ हो 

घर लौटो अब किसान भाई 
धरती माँ है बाट जोहती 
मिल के मनायें लोहड़ी पर्व को 
ढोल-नगाड़े ,घर-परिवार साथ हो 

लौट आये अब दिल की दिवाली 
जग जाये जगन तपन अब 
मन मयूर सा नाचे अब तो 
नस-नस में सँगीत की थाप हो