रविवार, 30 जनवरी 2011

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी

कच्ची मिट्टी हूँ , तराश लो
प्याला-ए-मीना या सागरो-सुराही की तरह

अजब सी बात है , उदास है जो पीता है
रंज का जश्न मनाने की तरह

बात सीधी सी है , चाहिए बस एक नजर
रहमत की इनायत की तरह

बूँद वही चखने को , वक्त रुका बैठा है
शबे-गम की ठहरी हुई सहर की तरह

ज़र्रा-ज़र्रा उधड़ गया अपना
इक नई शक्ल में ढलने की तरह

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह