रविवार, 30 जनवरी 2011

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी

कच्ची मिट्टी हूँ , तराश लो
प्याला-ए-मीना या सागरो-सुराही की तरह

अजब सी बात है , उदास है जो पीता है
रंज का जश्न मनाने की तरह

बात सीधी सी है , चाहिए बस एक नजर
रहमत की इनायत की तरह

बूँद वही चखने को , वक्त रुका बैठा है
शबे-गम की ठहरी हुई सहर की तरह

ज़र्रा-ज़र्रा उधड़ गया अपना
इक नई शक्ल में ढलने की तरह

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

28 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

बस यूँ ही महक बनाए रखिये ..खूबसूरत फज़ल

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

भावमय प्रस्तुति है......कुछ शेर अच्छे बन पड़े हैं |

नीरज गोस्वामी ने कहा…

अद्भुत रचना...बधाई
नीरज

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

मन को छू लेने वाली ग़ज़ल...

गौरव शर्मा "भारतीय" ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

वाह ....
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....

kshama ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह
Behad pyaree aur nafees panktiyan!

Arun sathi ने कहा…

अतिसुन्दर...आभार

बेनामी ने कहा…

ज़र्रा-ज़र्रा उधड़ गया अपना
इक नई शक्ल में ढलने की तरह

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

bohot khoobsurat alfaaz hain sharda ji.....bohot khoob

vandana gupta ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

सुन्दर अल्फ़ाज़ों के साथ उम्दा गज़ल्।

सदा ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह ।

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

Kailash Sharma ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह...

बहुत सुन्दर गजल..बहुत भावपूर्ण .

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सुन्दर, बहुत भावपूर्ण गजल..

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

मन को छू लेने वाले भावोँ की प्रस्तुति । अद्भुत रचना । आभार शारदा जी !


" कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ...........गजल "

प्रेम सरोवर ने कहा…

अमल और धवल भाव से लिखी गय़ी रचना मन के संवेदनसील तारों को झंकृत कर गयी।

mridula pradhan ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह
wah.bahut sunder.

Patali-The-Village ने कहा…

सुन्दर, बहुत भावपूर्ण गजल| धन्यवाद|

संध्या शर्मा ने कहा…

सुन्दर, बहुत भावपूर्ण गजल..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

शारदाजी बेहतरीन पंक्तियाँ रची हैं.....हृदयस्पर्शी

Coral ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ...बधाई
--------
मेरी बदमाशियां......
http://rimjhim2010.blogspot.com/

अभिषेक मिश्र ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति.

Anupriya ने कहा…

mitti ki sondhi sodhi mahak bachpan ki gali se gujarti hui yaha taq aa gai :) wah kya baat hai...
mere blog par aa kar mera hausla badhaya aapne,iske liye bhi bahot bahot dhanyawaad.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

बूँद वही चखने को , वक्त रुका बैठा है
शबे-गम की ठहरी हुई सहर की तरह
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा इस एक शेर में समेट दिया है आपने !

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

मिट्टी हूँ, ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह।

वाह, बहुत ख़ूब।
मिट्टी की महक जीवन भर साथ रहनी चाहिए।

अच्छी रचना।

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

अब सभी ब्लागों का लेखा जोखा BLOG WORLD.COM पर आरम्भ हो
चुका है । यदि आपका ब्लाग अभी तक नही जुङा । तो कृपया ब्लाग एड्रेस
या URL और ब्लाग का नाम कमेट में पोस्ट करें ।
http://blogworld-rajeev.blogspot.com
SEARCHOFTRUTH-RAJEEV.blogspot.com

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

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amrendra "amar" ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

बेहतरीन पंक्तियाँ

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाऊँगी
बचपन के नन्हें घरौंदों की तरह

बहुत खूब ......!!