सोमवार, 2 मार्च 2009

कब दूर किनारा है

उफनी हुई नदिया है
और पार उतरना है
बिगड़ी हुई किश्ती है
धारों पे चलानी है

किश्ती की मरम्मत कर
तूफानों से बचानी है
नदिया का रुख देखो
किनारे सँग ले चलती है

विपरीत बहावों में
सँग -सँग भी तो बहना है
रस्सी को ढीला कर
मौका गंवाना है

किश्ती का दम देखो
सागर से बहाना है
चंचल सी लहरों सँग
अठखेलियाँ करना है

उफनी हुई नदिया है
कब दूर किनारा है