रविवार, 22 जुलाई 2012

सूरज सा निकलते रहिये

ज़िन्दगी भोर है , सूरज सा निकलते रहिये  
चहकिए चिड़ियों सा , हर लम्हे को उत्सव कहिये 

धूप ही धूप  है बराबर सबके लिए   
अपने गीतों में दुनिया की पीड़ा कहिये   

ज़िन्दगी ले जाए चाहे जिस भी  तरफ 
उफ्फ़ न करिए , सागर के थपेड़े सहिये 

हर दिन है नया दिन , कल की क्यूँ सोचें 
गुलाबों सा खिलिये , महकते रहिये   

काम आये जो किसी के , इन्सान है वही  
ये जनम , ऐसा जीवन है तो सार्थक कहिये  

मत कोसिए  अँधेरों को , ये चुनौती हैं 
मन का दीप जला , रात के सँग सँग  बहिये 

हौसला , ज़िन्दादिली , उम्मीद का रँग  देखो 
उग आता है सूरज , इनकी बदौलत कहिये  

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अन्धेरे में रहे  

साथ चलते हुए यूँ भी अक्सर
अजनबी भी बन जाते अपने 
ये कैसे सफ़र पे हम तुम
दिन रात के फेरे से रहे 

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे

दिल लगाया तो चोट खाई भी
दिल है बड़ा सयाना तो सौदाई भी
हाय अपने ही न हुए हम
गैर के खेमे में डेरे में रहे

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे

कौन चुनता है पग से काँटे 
कौन बिछाता है राहों में फूल 
ये किसी और ही दुनिया की बातें होंगी 
हम जमीं पर इसी घेरे में रहे  

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे