न जाने कब सूरज मेरे दरवाजे पे उगेगा
हसरतों की देहरी पर कोई फूल खिलेगा
क्यों नाराज होऊँ मैं इन्तज़ार की शब से
के अहले-सफ़र भी मुश्किल से कटेगा
स्याह अन्धेरे में किधर चलना है
सिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा
चलने को कोई बात भी चाहिए के
रौशनी को चरागे-दिल ही जलेगा
दम कितना है ख़्वाबों में क़दमों में
इस ख़म का पता भी सुबह ही चलेगा
ग़ज़ल 437 [11-G] : यार मेरा कहीं बेवफ़ा तो नहीं
1 दिन पहले