एक दिन हिलने लगी नींव
इमारत के बुर्ज हिलते मिले
न गुजरें दिन न गुजरें रातें
हाथों से उम्र फिसलती मिले
या खुदा , आदमी का ऐसा भी मुकद्दर न लिख
गुजर जाए वक्त और आदमी खड़ा ही मिले
जीने के बहाने थोड़े मिले
मरने के बहाने बहुतेरे मिले
प्यास उम्रों से लगी है
धूप छाया भी सुलगते ही मिले
कुँए-तालाब , पेड़-पौधे
मौसम की राह तकते ही मिले
भला बताओ वो दोस्त कैसे हुए
फासले रख के जो दोस्तों से मिले
छिपी हैं वेदनाएँ ही संवेदनाओं में
इसीलिए हर कोई अक्सर हिलता ही मिले
इमारत के बुर्ज हिलते मिले
न गुजरें दिन न गुजरें रातें
हाथों से उम्र फिसलती मिले
या खुदा , आदमी का ऐसा भी मुकद्दर न लिख
गुजर जाए वक्त और आदमी खड़ा ही मिले
जीने के बहाने थोड़े मिले
मरने के बहाने बहुतेरे मिले
प्यास उम्रों से लगी है
धूप छाया भी सुलगते ही मिले
कुँए-तालाब , पेड़-पौधे
मौसम की राह तकते ही मिले
भला बताओ वो दोस्त कैसे हुए
फासले रख के जो दोस्तों से मिले
छिपी हैं वेदनाएँ ही संवेदनाओं में
इसीलिए हर कोई अक्सर हिलता ही मिले