गुरुवार, 4 नवंबर 2010

मनों अँधेरा खदेड़ते नन्हें से चिराग

चरागों से सीखें जलने का सबक़
दिलों के बुझने का भी तो सबब जानें

ये जल तो लेते हैं एक दूसरे से
अन्धेरा अपनी तली का न पहचानें

परवाह करते हैं सिर्फ अपनी ही नमी की
दूसरा चुक रहा है ये हैं अन्जाने

चरागे-दिल से रौशन होती दुनिया
स्याह रातों का खुदा ही जाने

कितनी आँखों में बुझ बुझ जला है जो
वो आरती का दिया दुनिया माने

मनों अँधेरा खदेड़ते नन्हें से चिराग
दिवाली की रात पूनम सी इतराती जानें