बुधवार, 29 जुलाई 2009

हथेलियों की हिना में मेरा नाम


झाँक आती है लेखनी
उसके दिल में
जो मेरा लगता नहीं कुछ
फ़िर भी बड़ा करीब है
पढ़ आती है उसका दिल
ये उसी राह का मुसाफिर
लगता रकीब
है

तेरी हथेलियों की हिना में मेरा नाम है कि नहीं
तेरी सोचों में मेरी जगह है कि नहीं

हर दिन के साथ मद्धिम होता है रँगे-हिना
मगर वो रूहे-हिना वक़्त को बाँध लेती है
हौसलों को अन्जाम देती है
वही रूहे-हिना मेरे नाम है कि नहीं

मन को चढ़ता है गहरा होता है रँगें-खुशबु-ऐ-वफ़ा
याद दिलाने को है हिना समाँ बाँध लेती है
हाथों को थाम लेती है
वही रँगे-हिना मेरे नाम है कि नहीं


मंगलवार, 21 जुलाई 2009

होता है आदमी भी खुदा

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता

औरों के जख्म-छालों पर
जब वो मरहम रखता होता

दिखता नहीं है कभी खुदा
बेशक उसका ही नजारा होता

नजर नजर का फेर है
जर्रे-जर्रे उसका ही पसारा होता

बहुत दूर नहीं वो हमसे
फैसले की घड़ी में इधर या उधर होता

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता




शनिवार, 11 जुलाई 2009

तू वफ़ा कर ना कर

तू वफ़ा कर ना कर , मुझको तो वफ़ा की आदत है
ये और बात है कि जफा , रास आती कब है

कैसे चुन लूँ मैं काँटें, चमन की झोली से
गुलाब रह-रह के जब लुभाते हैं

घर से चलते हैं , साबुत आने की दुआ करते हैं
कैसे न माँगें खैर उनकी , जो दुआओं से हमें मिलते हैं

बिखरे -बिखरे से वजूद हों जब , उम्मीद की डोरी से सिले जाते हैं
वफ़ा के रँग जो सुबह न सहेजे तो , शाम होते ही गुरबत का गिला करते हैं

इश्क जादू की तरह सर चढ़ता है , बेवफाई अन्धे कुँए में ला पटकती है
ये है दुनिया का चलन , नन्हे जिगर को खिलौना समझती है







शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

जो जी चाहे


जो जी चाहे वो घड़ियाँ याद कर लेना
जो साथ गुजरीं थीं वो कड़ियाँ आबाद कर लेना

१ नहीं मालूम हमको है , कहाँ जाती हैं ये राहें
हमें मालूम इतना है , बड़ी प्यासी हैं ये रूहें
बड़ी प्यासी हैं ये रूहें

२ कहाँ मिट्टी के माधो तुम , कहाँ हूँ मैं भी ठहरी सी
टकरा के किन्हीं नाजुक पलों में , न तन्हाँ छोड़ जाना तुम
न तन्हाँ छोड़ जाना तुम

३ वादे होते हैं सात जन्मों के , इरादे हों वफ़ा के जो
थोड़ी सुबहें , थोड़ी शामें , ये जन्म तो आशना के नाम हो जाए
आशना के नाम हो जाए