झाँक आती है लेखनी
उसके दिल में
जो मेरा लगता नहीं कुछ
फ़िर भी बड़ा करीब है
पढ़ आती है उसका दिल
ये उसी राह का मुसाफिर
लगता रकीब है
तेरी हथेलियों की हिना में मेरा नाम है कि नहीं
तेरी सोचों में मेरी जगह है कि नहीं
हर दिन के साथ मद्धिम होता है रँगे-हिना
मगर वो रूहे-हिना वक़्त को बाँध लेती है
हौसलों को अन्जाम देती है
वही रूहे-हिना मेरे नाम है कि नहीं
मन को चढ़ता है गहरा होता है रँगें-खुशबु-ऐ-वफ़ा
याद दिलाने को है हिना समाँ बाँध लेती है
हाथों को थाम लेती है
वही रँगे-हिना मेरे नाम है कि नहीं