मंगलवार, 21 जुलाई 2009

होता है आदमी भी खुदा

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता

औरों के जख्म-छालों पर
जब वो मरहम रखता होता

दिखता नहीं है कभी खुदा
बेशक उसका ही नजारा होता

नजर नजर का फेर है
जर्रे-जर्रे उसका ही पसारा होता

बहुत दूर नहीं वो हमसे
फैसले की घड़ी में इधर या उधर होता

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता