शनिवार, 6 मार्च 2010

समझो के शब हुई

आये हैं बीमार बीमार का हाल पूछने
कोई और भी है मेरे जैसा , तसल्ली हुई

आहट हुई राह में देख कर गुलाब को
सेहरे में गुंथता ये , ख़्वाबों से बात हुई

कोई गुजरा था कह देते हैं निशाँ सब कुछ
छेड़े जो तराने तो या खुदा दर्द हुआ या ग़ज़ल हुई

जितना है तेरा मन उदास , दर्द भी है उतना ही
अहसास दूरी का है जितना , उतनी ही तेरी प्यास हुई

कहाँ ढलता है सूरज दिन के ढलने पर
ढल जाती है जब उम्मीद , समझो के शब हुई