मंगलवार, 2 जून 2015

हाल अपना क्यूँ सुनाएँ

लम्हों ने कीं ख़ताएँ 
सदियों ने पाईं सजाएँ 

सहर सी खिलीं फिज़ाएँ 
मरघट सी सूनीं खिज़ाएँ 

लफ़्ज़ों में क्या बताएँ 
हाल अपना क्यूँ सुनाएँ 

फूलों को जो दिखाएँ 
काँटों पे चल बताएँ 

ज़िन्दगी की हैं अदाएँ 
सहरां में फूल खिलाएँ 

बर्फ सी ठण्डी शिलाएँ 
चिन्गारी किस को दिखाएँ