गुरुवार, 11 नवंबर 2010

तंग थी दिल की गली

कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही

करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही

साथ चलते चार दिन जो , पर दिलों में वहशत रही
लौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही

कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही