मंगलवार, 15 अगस्त 2023

बिटिया के लिए

बिटिया की तरफ़ से ... 

मम्मा मैं तेरी मैना 
मुखड़ा हूँ तेरा अपना
बैठी मुँडेर पर हूँ 
चहकूँ मैं तेरे अँगना 

 लौटूँ मैं जब भी घर को 
 रखना तू मुझको दिल में 
 ये घर है मेरा अपना 
 मम्मा मैं तेरी मैना 

 बचपन आवाज़ें देता 
 यूँ संग-साथ चलता 
 ममता ही मेरा गहना 
 मम्मा मैं तेरी मैना 

 उड़ती गगन में जब-जब 
 पंखों में भर के ख़ुशबू 
तेरा ही तो हूँ सपना 
मम्मा मैं तेरी मैना 

 माँ का दिल ये कहता है ... 

 तुझे दिल में छुपा कर रख लूँ मैं 
 दुनिया की नज़र से बचा कर रख लूँ मैं 
फूलों पर चला लूँ , काँटों से बचा लूँ 
कोई ऐसी जमीं मुमकिन कर लूँ 
ठण्डी हवा सी मैं सदा साथ तेरे 
हौले से तेरे कानों में कह दूँ 
आगे तू बढ़ना ,पल्ला तू झाड़ , ग़म नहीं कोई करना हर नामुमकिन भी मुमकिन होगा ,हिम्मत के आगे नहीं कोई टिकता 
स्नेह से अपनी गागर भरना 
 तुझे नज़रों में बसा कर रख लूँ मैं 

सोमवार, 6 मार्च 2023

खिल जाती हैं दीवारें

किस काम का ये घर जो इसमें सज्जन मित्र न आएँ 

खिल जाती हैं दीवारें जो आकर मित्र मुस्कुराएँ 


कोई तो ठौर हो ऐसा कि धूप में भी छाँव हम पाएँ 

लगा लें सीने से ऐसी दुनिया को ,जो कहीं आराम हम पाएँ 


उग आते हैं चाँद सूरज तो इकट्ठे  , हमारे मन तो जरा गुनगुनाएँ 

नज़र उठती है यूँ तो अक्सर ,किसी आँख में वफ़ा का रँग तो पाएँ 


ये दुनिया है अजब तिलिस्म , तेरी जादूगरी को हम भी कुछ आबाद कर जाएँ 

आप आये हमारे घर , महका है समाँ ,समझ लो खुद ही , ये बेशक हम न कह पाएँ 



सोमवार, 21 नवंबर 2022

चलना होगा

 बहुत कुछ नहीं होगा तेरे मन का , फिर भी तुझे चलना होगा 

ये लम्हों का सफ़र सदियों-सदियों का चलना होगा 


तुम भूल गए हो के वो दोस्त नहीं है 

लब पर आते हुए लफ़्ज़ों को संभलना होगा 


तुमको वफ़ा करनी थी इसीलिए की

बेचैनियों के बिस्तर पर रात को ढलना होगा 


ज़िन्दगी महज़ ख़्यालों के सिवा कुछ भी नहीं 

रोज़ मरते-जीते खुद को ही छलना होगा 


छाँव क़िस्मत में होगी तो मिलेगी 

हवा का रुख़ मोड़ना परछाइयों से मिलना होगा 


मंज़िल थी सामने ही फिर भी पहुँचे न हम कहीं 

किसे पता था दिल से दिल तक का सफ़र , मीलों-मील का चलना होगा 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

ज़िन्दगी निभाने में

 बूँद-बूँद रिस गये हम , उम्र के प्याले से 

रीते रहे हम , ज़िन्दगी के निवाले से 


तुरपनें , पैबंद, बखिए , सीवनें 

सारी क़वायदें ज़िन्दगी निभाने में 


आँखों के सामने पतझड़ जो उतरें 

सीने के मौसम कैसे फिर निखरें 


हमने तो अक्सर तिनके की छाँव में 

खुद को सम्भाला , धूप के गाँव में 


अपनी-अपनी धरती है , अपना-अपना अम्बर है 

एक ख़ुदा बाहर तो एक पैग़म्बर अन्दर है 

रविवार, 19 दिसंबर 2021

आज की कड़वी हकीकत

चाँद तक जा पहुँचे हो

पड़ोसी के घर तक पहुँच नहीं 


कितनी डिग्रियाँ कर लीं हासिल 

आम सी बात तो मालूम नहीं 


कितने दोस्त हैं तुम्हारे F.B. पर 

मगर एक भी जिगरी यार नहीं 


बड़े से बँगले में हो तनहा 

चार-जन का भी तो परिवार नहीं 


कितने अंकों में है आय तुम्हारी 

मगर मन को तो है कहीं करार नहीं 


कितनी कीमती-कीमती घड़ियाँ हैं हासिल 

मगर पल-दो-पल का वक़्त भी मयस्सर नहीं 


बुद्धि से मात देते हो दिग्गजों को 

मगर दिल से दिल तक पहुँचने की संवेदनाएँ ही नहीं 


आज की कड़वी हकीकत है ये 

कंक्रीट के जंगल में आदमी सा कोई किरदार नहीं

रविवार, 8 अगस्त 2021

इतनी सी ज़िन्दगी

इतनी सी ज़िन्दगी है ,
आज है कल नहीं है 
यूँ तो है ये मुट्ठी में ,
फिसली तो बस नहीं है 

उट्ठे जो दिल में नेकी ,
कर डालो बस अभी तुम 
मन की है ये ही फितरत ,
बदले तो हद नहीं है 

आँखों में बसी जो सूरत ,
तरसेंगें देखने को भी 
अहसास तो यहीं हैं ,
वो मूरत ही बस नहीं है 

मिलने के सौ बहाने ,
छोड़ो न एक भी तुम 
क्या पता है कल क्या होगा ,
वक़्त है भी या नहीं है 


मंगलवार, 25 मई 2021

बचपन की महक

 

सुनो वीना.... ऐ दोस्त ,तकरीबन साढ़े चार दशकों के बाद तुमसे मिलने का इन्तज़ार , आँखों में बसी उस उम्र की कमनीयता , दिल में बसा वही सौन्दर्य..... उस उम्र में जब मैं दूसरे शहर से स्कूल में नई-नई आई थी , तुम्हारा अपना ग्रुप था ..... तुम , सीता ,अमृत ,आशा गाबा ,निर्दोष , मधु ,कमल ,पुष्पा ,अनीता, सब। कितने अपनत्व से तुम सबने मुझे गले लगा लिया था। वैसा फिर कम ही हुआ। लोग दूसरे के बारे में एक राय कायम किये रहते हैं और एक नट-शैल के अन्दर रहते हैं। 

ये तो जानती थी चेहरे अब वैसे नहीं होंगे। उम्र जब दस्तक देती है तो शिकनों की तरह अपनी छाप छोड़ती जाती है। ज़िन्दगी की उदासियाँ ,कड़वाहटें भुलाने के लिये एक अदद दोस्त ही काफी होता है। जब तुम मुझे मिलने आ रहीं थीं देखो मन ने क्या लिखा ..... 

मुद्दत हुई उस ज़माने से मिले 
आओ ऐ दोस्त के कुछ सुकून जैसा मिले 

तैरने लगी बचपन की आबो-हवा 
ऐसा लगा गुजरे ज़माने से मिले 

बड़ी धूप है ऐ दोस्त 
सहरा में हर कोई प्यासा ही मिले 

आँखें तो ढूँढती हैं ऐ मेरे दोस्त 
बहाने की तरह कोई दिलासा सा मिले 

दोस्त होते तो टिके रहते 
वरना दुनिया में लोग बहुतेरे मिले 

तलाशेंगी मेरी आँखें तुम्हारी आँखों में 
वही अल्हड़पन जो कहीं दुबारा मिले 

कुछ बची होगी हमारे-तुम्हारे बचपन की महक 
आ उसी राब्ते को फुर्सत से मिलें