शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

अपने अपने सफ़र की बात है

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं 

समझे थे जिसे हम आबो-हवा 
सहरा में धूप से क्या निज़ात है 

आँधी-तूफाँ बने सँगी-साथी 
टकराये भी अगर तो बरसात है 

जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
ऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है 

लेती है करवट कभी जो तन्हाई  
पास शहनाई दूर वो बारात है 

चलना पड़ता है रुख हवाओं के भी 
आगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है 

बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के 
हौसले का जगमगाना भी सौगात है 

कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली 
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है 

गीतों-नज़्मों के काँधे रखे सर हुए 
एक दुनिया में अपनी भी औकात है 

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं 

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

इक ख़्वाब जरुरी है

खूबसूरती देखने के लिये , वो आँख जरूरी है 
दिल तक उतरने के लिये ,इक आब जरुरी है 

दम भरता है क़दमों में जो 
रँग भरने के लिये , इक ख़्वाब जरुरी है 

जाने कहाँ ले जाये हमें 
मंजिले-मक्सद के लिये ,  दिले-बेताब जरुरी है 

कितने ही मन्जर रोकें क़दमों को 
राहे-वफ़ा के लिये , असबाब जरूरी है 

सवाल-दर-सवाल है ज़िन्दगी गर 
ज़िन्दगी के लिये , ज़िन्दगी सा जवाब जरुरी है 

कहने को चल रहे हैं जुगनुओं के शहर में 
सहर के लिये मगर , आफ़ताब जरुरी है 

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

ये जनम तो तन्हाई के नाम

ज़िन्दगी कुछ यूँ भी गुजरी 
हाथ और प्याले की दूरी मीलों लगी 

उसको चलना ही नहीं था साथ 
बात कहने में इक उम्र लगी 

चाहने भर से क्या होता 
ना-मन्जूरी की ही मुहर लगी 

ये जनम तो तन्हाई के नाम 
समझने में बहुत देर लगी 

हाथ में कुछ भी नहीं है 
माथे पे शिकन ही शिकन लगी 

गर ताजमहल नहीं है किस्मत में मेरी 
खाकसारी भी मुझे न्यारी ही लगी 

सजा ही है ईनाम गर तो 
दाँव पर उम्र सारी ही लगी