रविवार, 4 दिसंबर 2016

इक बेहतर कल का निर्माण चल रहा है

ये देश बदल रहा है , इतिहास रच रहा है 
गाँधी के सपनों का भारत , करवट बदल रहा है 

थोड़ी सी कस है खानी , थोड़ी सी परेशानी 
अपने हितों से बढ़ कर , पहचानो है देश प्यारा 
आओ हम आहुति दें , इक बेहतर कल का निर्माण चल रहा है 
ये देश बदल रहा है 

उग्रवाद , कालाबाजारी और जाली नोटों का धन्धा 
कर रहे थे प्रहार नींव पर ही ,भ्रष्टाचार से त्रस्त थे 
विमुद्रीकरण ही हल था , काला धन निकल रहा है 
ये देश बदल रहा है 

अब न पसारे हाथ कोई , न हों भूखे बच्चे गली-गली 
ओत-प्रोत हो मानवता , अच्छे दिनों का आगाज़ 
इक उजली सी  सुबह का सूरज निकल रहा है 
ये देश बदल  रहा है