शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

अपने अपने सफ़र की बात है

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं 

समझे थे जिसे हम आबो-हवा 
सहरा में धूप से क्या निज़ात है 

आँधी-तूफाँ बने सँगी-साथी 
टकराये भी अगर तो बरसात है 

जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
ऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है 

लेती है करवट कभी जो तन्हाई  
पास शहनाई दूर वो बारात है 

चलना पड़ता है रुख हवाओं के भी 
आगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है 

बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के 
हौसले का जगमगाना भी सौगात है 

कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली 
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है 

गीतों-नज़्मों के काँधे रखे सर हुए 
एक दुनिया में अपनी भी औकात है 

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं