भीड़ के इस रेले में , जैसे कोई अपना न था
तन्हाई ले है आई ये हमें किस मोड़ पर
खुली आँखों की इस नीँद में , अब कोई सपना न था
चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
उसके सिवा अब रात का , अपना कोई खुदा न था
या खुदा इम्तिहाँ न ले , तू मेरा इस मोड़ पर
सिलसिला ये रात दिन का , जख्मों से जुदा न था