और हाँ नैनीताल जैसे ज़न्नत , और अब विदा लेने का वक्त आ चला है ....
कोई मेरे हाथों से जन्नत को लिये जाता है
मेरे ख्वाबों के फलक को , लम्हों में पिये जाता है
घबरा के मुँह फेर लेती है आशना अक्सर
अब ये आलम है के दिल दीवाना किये जाता है
अपने ही शहर में मुसाफिर की तरह रहे हम
अपनों के बीच ही कोई बेगाना किये जाता है
खिड़की से घर में दाखिल होते अब्र के झुण्ड
दिल तक उतरती हुई नमी से कोई ज़ुदा किये जाता है
फिर न ये नज़ारे होंगे , न ये आबो-हवा
दिल ही नादाँ है जो , नजरों से पिये जाता है
बरसों-बरस फुर्सत न मिली , छूटने लगा जो शहर
ये कौन है जो फिजाँ का मोल किये जाता है
कोई मेरे हाथों से जन्नत को लिये जाता है
मेरे ख्वाबों के फलक को , लम्हों में पिये जाता है
घबरा के मुँह फेर लेती है आशना अक्सर
अब ये आलम है के दिल दीवाना किये जाता है
अपने ही शहर में मुसाफिर की तरह रहे हम
अपनों के बीच ही कोई बेगाना किये जाता है
खिड़की से घर में दाखिल होते अब्र के झुण्ड
दिल तक उतरती हुई नमी से कोई ज़ुदा किये जाता है
फिर न ये नज़ारे होंगे , न ये आबो-हवा
दिल ही नादाँ है जो , नजरों से पिये जाता है
बरसों-बरस फुर्सत न मिली , छूटने लगा जो शहर
ये कौन है जो फिजाँ का मोल किये जाता है