मान-अपमान भी तय है ,वितृष्णा भरी आँख का सामान भी तय है
न भटकना ऐ दिल , तुझको सहना है जो वो तूफ़ान भी तय है
न राहों से गिला , न कश्ती से शिकायत मुझको
तूफानों के समन्दर में , मेरा इम्तिहान भी तय है
डूबेंगे कि लग पायेंगे किनारे से हम
है किसको पता ,मगर अपना अन्जाम भी तय है
मत बाँध इन किनारों में ऐ खुदा मुझको
मंजिल-ऐ-मक़्सद के लिये , रूहे-सुकून का अरमान भी तय है
थोड़ी धूप , थोड़ी छाँव ओढ़ कर घर से निकले
सफर में जो सामान बटोरा , सर पे बोझ से ढलान भी तय है
न भटकना ऐ दिल , तुझको सहना है जो वो तूफ़ान भी तय है
न राहों से गिला , न कश्ती से शिकायत मुझको
तूफानों के समन्दर में , मेरा इम्तिहान भी तय है
डूबेंगे कि लग पायेंगे किनारे से हम
है किसको पता ,मगर अपना अन्जाम भी तय है
मत बाँध इन किनारों में ऐ खुदा मुझको
मंजिल-ऐ-मक़्सद के लिये , रूहे-सुकून का अरमान भी तय है
थोड़ी धूप , थोड़ी छाँव ओढ़ कर घर से निकले
सफर में जो सामान बटोरा , सर पे बोझ से ढलान भी तय है