बुधवार, 19 मई 2010

रँग सारे भरती

इतना चुभते से क्यों हैं रेशमी धागे
अपनी चलती नहीं है कुछ भी उसके आगे

मेरे काढ़े कसीदे नहीं कढ़ते
मेरे यत्नो से फूल नहीं खिलते
हाथ लगते ही तेरा ये क्या होता
अरमानों के दीप सारे जलते

डोरी रेशमी है क्यों चुभती
तिल्लेदार है आँखों में रमती
जरीदार , चटख , चमकीली
इसीलिये तो रँग सारे भरती

इतना चुभते से क्यों हैं रेशमी धागे
अपनी चलती नहीं है कुछ भी उसके आगे