सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

धूप हम भुला न सके

ये जो हाले-दिल तुम्हें हम सुना न सके
फासले दिलों के भी हैं ,जो मिटा न सके

तुम्हारे तरकश में तीर शब्दों के हैं
ज़ख्मी-जिगर निशाँ ,आज तक भुला न सके

उम्र भर पूछते रहे ज़िन्दगी का पता ही
फूल तेरी चाहत के ,अरमान खिला न सके   

धूप ही धूप उतर आई है शब्दों में 
छाया कितनी भी रही , धूप हम भुला न सके 

उँडेल कर रख दिया है सीना हमने 
जो तुम पढ़ न सके , हम पढ़ा न सके 

इक अदद दोस्त की तमन्ना ने हमें मारा है 
वरना ज़िन्दा थे हम भी ,क्यों गुनगुना न सके 

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

ये सानिहा सा

वो आया तो ऐसे आया ,
जैसे हो साँझ का कोई झुटपुट साया 
हाथ से फिसला वही लम्हा ,
समझा था जिसे , जीने का सरमाया 

हमने देखे हैं गुलाब महकते हुए भी ,
काँटों पे चल के , ये हमने क्या पाया 
सजी हुई थी चाँद तारों की महफ़िल ,
फिर ये सानिहा सा क्यूँकर आया 

दाँव पर दिल ही लगा ,हर बार ,
किसके पास कभी कोई ,सिर के बल आया 
ज़िन्दगी धूप ही रही है , हमेशा 
छाया की फितरत को कब टिकते पाया 


रविवार, 1 फ़रवरी 2015

ज़िन्दगी का निशाँ

ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो  
के तन्हा सफ़र कटता नहीं   

 

दम घुटता है के
साहिल का पता मिलता नहीं   

जगमगाते हुए इश्क के मन्जर  

रूह को ऐसा भी घर मिलता नहीं 
 
  
तुम जो आओ तो गुजर हो जाए  

मेरे घर में मेरा पता मिलता नहीं 
 
  
लू है या सर्द तन्हाई है 

एक पत्ता भी कहीं हिलता नहीं  


ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो  

बुझे दिल में चराग जलता नहीं  
 

तुम्हीं तो छोड़ गई हो यहाँ मुझको  

ज़िन्दगी का निशाँ मिलता नहीं