रविवार, 19 अगस्त 2012

चाहिये भी क्या

आदमी को चाहिये भी क्या 
एक चुटकी प्यार ही ना 

है चाहतों का ऐसा असर 
नस नस में घुला खुमार ही ना 

गालों पर खिलता गुलाब 
हथेलियों पे रची रँगे-हिना 

बज रहे हैं तार दिल के 
साज दिल का है सितार ही ना 

कौन धड़कनों में शामिल है 
दिल की बस्ती है गुलज़ार ही ना 

रूह से मिटता नहीं उसका ख्याल 
रगों में खून सा शुमार ही ना