गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

सोच के दीप जला कर देखो


दूर गगन में जा कर देखो

सोच के दीप जला कर देखो


चन्दा तो उतना ही हँसी है

जितने पँख लगा कर देखो


उडती पतंगें मौजों सी ही

गीत सुहाने गा कर देखो


जीवन आनी जानी शय है

कोई तो अलख जगा कर देखो


रुत बदले , मिजाज भी बदले

वक्त से ताल मिला कर देखो


मरघट सी सूनी ख़ामोशी

क़ैद से बाहर कर देखो


बच्चे बूढ़े जवाँ हो जाते

आस का फूल खिला कर देखो


घर भर को रौशन कर देता

एक दिया ही जला कर देखो