सपना होता तो उड़ान भी होती
रेला होता तो लगाम भी होती
इक चुप सी लगी है जाने
बात होती तो जुबान भी होती
वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये
ठहरे होते तो थकान भी होती
क्यूँ आहों को सजाये बैठे हैं
सामाँ होता तो दुकान भी होती
बस्ती से ज़ुदा वीरान है मस्ज़िद
मुल्ला होता तो अज़ान भी होती
रेला होता तो लगाम भी होती
इक चुप सी लगी है जाने
बात होती तो जुबान भी होती
वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये
ठहरे होते तो थकान भी होती
क्यूँ आहों को सजाये बैठे हैं
सामाँ होता तो दुकान भी होती
बस्ती से ज़ुदा वीरान है मस्ज़िद
मुल्ला होता तो अज़ान भी होती