शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

देख के कितना है रन्ज रिश्ते में

तू न देख के कितना है रन्ज रिश्ते में अपने,
तू ये देख के क्या क्या है निभाया मैंने 
सारी दुनिया मिलती है किसे ,
टुकड़ों में मिली धूप को कैसे गले लगाया मैंने 

तू मुझसे जुदा ही नहीं है ,
कैसे समझाये कोई अपने ही जिगर को 
बोले जो कभी भी तुम सख़्त होकर ,
दरक गया कुछ तो कैसे सँभाला मैंने 

बेशक तू न देख पाये के ,
कितनी है रँगत तुझसे मेरी दुनिया में 
तू ये देखना के मुश्किल वक़्त ने हमें जोड़ा कितना 
तेरे चेहरे की इक-इक शिकन पर ,
सुख-चैन अपना सारा लुटाया मैंने 

रिश्तों की खूबसूरती एक-दूसरे को बर्दाश्त करने में है , निभाने में है 
तू ये देख के तकरार में भी है क्या-क्या तुझसे चाहा मैंने 
तू न देख के कितना है रन्ज रिश्ते में अपने,
तू ये देख के क्या क्या है निभाया