सोमवार, 27 अप्रैल 2009

तेरी हर बात

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
कैसे पायेगी सिला
उथली है , उड़ी होती है
ठगे से देखते हैं , पलकें झुकती भी नहीं

कैसे करते हम गिला
वफाओं का बाग़ मिलता नहीं

रूठा रूठा सा चमन
खुशबू का ख्वाब खिलता नहीं

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
देखें किस ओर ले जाती है ये

तेरे झूठे बहानों में
मुझसे मिलने का सच भी तो छुपा होता है
तेरी हर बात....


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आवाज में