एक आस का दिया जला कर , कितने फूल खिलाये हमने
मैं ही नहीं हूँ कायल इसकी , दुनिया भर से जा कर पूछो
दीवाली सी जगमग होती , तम से भरी रात भी देखो
बाती सँग तेल भी सार्थक होता , जी भर कर तुम जल कर देखो
और चमन में क्या करना है , सूरज की अपनी महिमा है
रँग जाते हैं उस रँग में , जिसके सँग तुम चल कर देखो
सदियों से होता आया है , अक्सर दुख का खेल यहाँ
अन्तर्मन में न उतरे जो , ऐसा सौदा ले कर देखो
खुशबू भला कहाँ छुपती है , आँखें कर देती हैं चुगली
इन्द्रधनुष सा खिल उठता है , फलक की सीढ़ी चढ़ कर देखो