बुधवार, 19 जनवरी 2011

रग-रग में धूप समाई न

आ बैठे निशाँ भी चेहरे पर 

रग-रग में धूप समाई न 


हम वादा कर के भूल गए 

खुद से भी हुई समाई न  


क्यूँ जाते हैं उन गलियों में 

पीछे छूटीं , हुईं पराई न 


ठहरा है सूरज सर पर ही 

चन्दा की बारी आई न 


सरकी न धूप , रुका मन्जर 

आशा से हुई सगाई न 


न कोई नींद , न कोई छलाँग 

पुल सी कोई भरपाई न 


दर्द है तो है गमे-तन्हाई भी 

काँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न