मंगलवार, 21 जनवरी 2014

18 jan.14,नैनीताल में स्नोफाल की अनुपम छटा

 ये कौन सी चाँदनी है लहराई हुई 
बिखर गई है सफेदी चारों तरफ बल खाई हुई 

ये मेरे शहर के घरों की छतों ने ओढ़ ली चादर 
जैसे के हो कोई नवेली शरमाई हुई 

मौसम का तकाज़ा है के बैठें घर में 
मन के पँछी को तो उड़ानें हैं भाई हुई 

कैद कर लेंगे इन नज़ारों को सीने में 
फिर अगले बरस आएगी ये रूत इतराई हुई 

आवाज नहीं करती है कुदरत 
चुपचाप है ये मेहर कहाँ से आई हुई 

हम टँगे हैं अपनी खिड़की पर 
देख रहे हैं परत-दर-परत चाँदनी तहाई हुई 


मौसम का पारा तो गिर गया है बहुत 
मगर आँखों की बहुत सिकाई हुई 

लोग गिरते-पड़ते ,उछालते बर्फ के गोले 
इस बहाने भी कोई मस्ती है हाथ आई हुई 

बर्फ के फूल खिले हैं हर चेहरे पर 
ये धूप है हर आँगन में समाई हुई