शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

तुम ही तुम हो

यूँ ही नहीं आते हैं जलजले 
धुरी से जमीं अक्सर खिसकी ही मिले 

परेशान है दुनिया सारी 
जाने किस दौड़ में शामिल सी ये लगे 

मुस्कुरा के जो चल दे अकेले ही 
आधार कोई उँगली पकड़े मिले 

नया नहीं है कुछ भी सूरज के तले 
नया तो वो है जो सह ले जिगर से चले 

चढ़ आती है धूप मुंडेरों पर  
धूप छाया की तरह जिन्दगी ही खिले 

तारीफ़ तुम्हारी , गिले भी तुमसे 
तुम ही तुम हो हमारे साथ चले