जिन्दगी तुझको जब भी देखा मैंने
इक मुखौटे को तेरे हाथ से छीना मैंने
मन के अँगना में फलक तन्हा है
चाँद सूरज की तरह उनको उतारा मैंने
मुड़ के देखा नहीं कभी पीछे
इक मुखौटे को तेरे हाथ से छीना मैंने
मन के अँगना में फलक तन्हा है
चाँद सूरज की तरह उनको उतारा मैंने
मुड़ के देखा नहीं कभी पीछे
जिन्दगी तुझसे बहुत प्यार किया है मैंने
साथ देती नहीं परछाई भी
साथ देती नहीं परछाई भी
फिर भी हर लम्हा ऐतबार किया है मैंने
हर बहाना तेरा सर माथे पर
हर मोड़ पे इन्तिज़ार किया है मैंने
बिखरूंगी तो बिखर जायेंगे वो टुकड़े
लम्बे हाथों से जिगर में जिनको रक्खा मैंने
हर बहाना तेरा सर माथे पर
हर मोड़ पे इन्तिज़ार किया है मैंने
बिखरूंगी तो बिखर जायेंगे वो टुकड़े
लम्बे हाथों से जिगर में जिनको रक्खा मैंने