सोमवार, 10 मई 2010

मन के अँगना में फलक तन्हा है

जिन्दगी तुझको जब भी देखा मैंने
इक मुखौटे को तेरे हाथ से छीना मैंने 


मन के अँगना में फलक तन्हा है
चाँद सूरज की तरह उनको उतारा मैंने


मुड़ के देखा नहीं कभी पीछे
जिन्दगी तुझसे बहुत प्यार किया है मैंने

साथ देती नहीं परछाई भी
फिर भी हर लम्हा ऐतबार किया है मैंने

हर बहाना तेरा सर माथे पर
हर मोड़ पे इन्तिज़ार किया है मैंने


बिखरूंगी तो बिखर जायेंगे वो टुकड़े
लम्बे हाथों से जिगर में जिनको रक्खा
मैंने