अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है
गम की आदत है ये दिन रात भुला देता है
हम नहीं आयेंगे इसके झाँसे में
चराग दिल का यूँ भी जला रक्खा है
नाम वाले भी कभी गुमनाम ही हुआ करते हैं
ज़िन्दगी गुमनामी से भी बढ़ कर है
ये गुमाँ खुद को पिला रक्खा है
शबे-गम की क्यूँ सहर होती नहीं
तारे गिनते गिनते रात भी कटे
इस उम्मीद पर दिल को बहला रक्खा है
अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है
गम की आदत है ये दिन रात भुला देता है
हम नहीं आयेंगे इसके झाँसे में
चराग दिल का यूँ भी जला रक्खा है
नाम वाले भी कभी गुमनाम ही हुआ करते हैं
ज़िन्दगी गुमनामी से भी बढ़ कर है
ये गुमाँ खुद को पिला रक्खा है
शबे-गम की क्यूँ सहर होती नहीं
तारे गिनते गिनते रात भी कटे
इस उम्मीद पर दिल को बहला रक्खा है
अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है