हर आहट को समझा उसका पैगाम
हर मन्जर को किया मैंने सलाम
कितने ही पिये उम्मीद के जाम
कैसी है आहट , कैसे अन्जाम
अँगना में ठहरी है वो ही शाम
कोई सुबह क्या नहीं मेरे नाम
चलता है वही जो हमको थाम
वही अपनी डोरी वही गुलफाम
रँग देखे दुनिया के अजब अनाम
ख़्वाबों-ख्यालों की दुनिया तो ...नहीं इसका नाम , नहीं इसका नाम !
गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010
नहीं इसका नाम !
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