तेरे काँधे पे रखूँ सर और
जिन्दगी साजे-ग़ज़ल हो जाये
जिन्दगी कड़वी नहीं मीठी सी
किन्हीं दुआओं का फल हो जाये
यूँ ही कहते नहीं आफताब तुम्हें
तेरी आँखों की चमक मेरा नूरे-महल हो जाये
जिन्दगी यूँ भी बहुत मुश्किल थी
तेरे आने से बहारों को खबर हो जाये
कैसे कह दूँ के है इन्तिज़ार नहीं
तेरी साँसों की महक जिन्दगी का सबब हो जाये
किसने देखा शम्मा को बूँद बूँद मिटते हुए
जल के परवाना अमर हो जाये
ग़ज़ल 300 [65इ] : आँधियों से तुम अगर यूँ ही डरोगे
16 घंटे पहले