शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी इतनी आसान भी नहीं थी 
दूर के मकान से देखी हुई दास्तान भी नहीं थी 

दूर भागे भी तुझी से, गले लगाया भी तुझी को 

महबूब की तरह इतनी मेहरबान भी नहीं थी 

कैसे दिल लगा लेते हर शहर , हर घर से 

ज़िन्दगी टिक के रहने का सामान भी नहीं थी 

लम्हा-लम्हा जो गुजरा कोई कैसे बताये 

ज़िन्दगी-ज़िन्दगी है, आंधी-तूफ़ान भी नहीं थी 

हर चुभन बनी नज़्म और आँच ढली हर्फ़ों में 
शिकस्तगी की भला क्या कोई ज़ुबान नहीं थी 

सँग-दिलों में दिल तलाशती हूँ ,  ऐ ज़िन्दगी 

ऐतबार, भरोसे के सिवा तेरी कोई पहचान भी नहीं थी