मंगलवार, 17 जुलाई 2012

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अन्धेरे में रहे  

साथ चलते हुए यूँ भी अक्सर
अजनबी भी बन जाते अपने 
ये कैसे सफ़र पे हम तुम
दिन रात के फेरे से रहे 

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे

दिल लगाया तो चोट खाई भी
दिल है बड़ा सयाना तो सौदाई भी
हाय अपने ही न हुए हम
गैर के खेमे में डेरे में रहे

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे

कौन चुनता है पग से काँटे 
कौन बिछाता है राहों में फूल 
ये किसी और ही दुनिया की बातें होंगी 
हम जमीं पर इसी घेरे में रहे  

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे


20 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर
क्या कहने

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कौन चुनता है पग से काँटे
कौन बिछाता है राहों में फूल
ये किसी और ही दुनिया की बातें होंगी ..

बहुत खोब ... सच कहा है आज को कोई भी नहीं है जो ऐसा करे किसी के साथ ... कड़वी हकीकत से रूबरू करवाती रचना ..

संध्या शर्मा ने कहा…

बहुत खूबसूरती से संजोया है भावों को... आभार

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर शारदा जी...

सादर
अनु

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति..

Rajesh Kumari ने कहा…

ग़मगीन करते हुए जज्बाती शब्द बहुत खूब

devendra gautam ने कहा…

bahut khoob...

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बेहद खूबसूरत शब्द रचना

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर भावों की सफल प्रस्‍तुति ..

समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut pyari rachna....

RADHIKA ने कहा…

सुन्दर भाव और सुंदर रचना

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

प्रेम दर्द व्यक्त करती ..
भाव भरी रचना...

सदा ने कहा…

तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे
वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बेहतरीन रचना

शSSSSSSSSSS
कोई है

समय चक्र ने कहा…

कौन चुनता है पग से काँटे
कौन बिछाता है राहों में फूल
ये किसी और ही दुनिया की बातें होंगी

खूबसूरत शब्द रचना...

Pallavi saxena ने कहा…

अनुपम भाव संयोजन आज आपकी यह पोस्ट पढ़कर एक गीत याद आया
हेड या टेल प्यार मूहोब्बत दिल का खेल
इस खेल में कोई है पास-कोई है पास
तो जोई है फेल... :)

Pallavi saxena ने कहा…

समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

कुमार राधारमण ने कहा…

इक तरफ थी रोशनी,इक तरफ था अंधेरा
कहीं बीच में भटकते फिरते थे हम-तुम!

अरुन अनन्त ने कहा…

बहुत खुबसूरत प्रस्तुति उम्दा ग़ज़ल

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर नज़्म।