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वो जो इक बोल मेरी ओर
तुमने उछाला मानों
लपक के पकड़ा मेरे दिल ने
कोई निवाला जानो
बरसा गया कोई बादल
ठण्डी फुहारें मानो
खिल गये फूल और कलियाँ
आईं बहारें जानो
बिना बोले ही तेरी नजरों ने
उछाले दिलासे मानो
झोली भर ली , छंट गये
सारे कुहासे जानो
तूफाँ में नहीं हिलना
तूफाँ के साथ बहना
मुश्किल है मुश्किल में
लहरों को यूँ गिनना
डूबेगा ख़ुद ही तो
अर्जी है भँवर की ये
समँदर की मौजे हैं
किनारे छू के मुस्करायें
मचलें हैं लहरें तो
चंदा से मिलने को
बेशक उनकी भी तो
हर आस अधूरी है
कुछ भी छूटे या रूठे
मौजों के साथ बहना
तरंगें ही जीवन है
हर पल है यही कहना
दुःख गीत ग़ज़ल हो जाता है
गर दुःख के तराने पर थिरक सकें
१.कड़वे शब्दों को न देना दावत
इतने मर्जों से बढ़ कर और सजा क्या है
मर्जों की दवा हो जाती है
गर पग-पग घुँघरू झनक सकें
२.दुःख इम्तिहान लेता है
मीठे बोलों से बढ़ कर और दुआ क्या है
दिल साजे ग़ज़ल हो जाता है
गर दुःख की तर्ज़ पर खनक सकें
उफनी हुई नदिया है
और पार उतरना है
बिगड़ी हुई किश्ती है
धारों पे चलानी है
किश्ती की मरम्मत कर
तूफानों से बचानी है
नदिया का रुख देखो
किनारे सँग ले चलती है
विपरीत बहावों में
सँग -सँग भी तो बहना है
रस्सी को ढीला कर
मौका न गंवाना है
किश्ती का दम देखो
सागर से बहाना है
चंचल सी लहरों सँग
अठखेलियाँ करना है
उफनी हुई नदिया है
कब दूर किनारा है
गुलाबी गुलाबी रँग अरमानों के
गुलाबी गुलाबी ख्वाब इन्सानों के
१.फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं
गुलाबों के सँग इनकी आशिकी पली है
उलझा दामन तेरा तो क्यों गम है करता
चेहरे पे तेरे वो नूर बन बिखरता
२. बिना किसी धागे के पिरोयेगा कैसे
साँसों की माला के मोती हों जैसे
गुदड़ी में लाल जो तू छुपाये है फिरता
गुलाबी सी रँगत का ख्वाब बन उतरता
बंद गलियों से आगे मुकाम होता है
तेरी हिम्मत का जवाब होता है
तंगहाली ही सब्रोइम्तिहान होता है
राह काँटों से सजी फूल पैगाम होता है
उठते क़दमों से चलने का गुमान होता है
तूफानों के बाद ही आराम होता है
दम लगा कर ही कोई दमदार होता है
तेरा दम भी तेरा मेहनताना होता है
बंद गलियों के आगे मुकाम होता है
तेरी हिम्मत का जवाब होता है
दिल सुलगता ही रहा
गीली लकड़ियों की तरह
आग लगती है नहीं
चिन्गारी भी मिटती नहीं
सँसार किस तरह दिखे
जब आँख खुलती है नहीं
धुँआ-धुँआ सा अन्दर है
धुँआ-धुँआ है हर कहीं
धुँए के पार दिखता नहीं
आसमाँ की तरफ़ तकते रहे
अपनी दीवारों में क़ैद हो
ख़ुद से गिला करते रहे
टकरा के लौटी है हवा
रास्ता कहाँ हमने रखा
फूलों की डाली कहाँ सजी
दिलवालों की दिवाली कहाँ मनी
हम गीली लकडियाँ लिए
अपना ज़हन सुलगाते रहे
अपनी तपिश से बेखबर
हादसों को जगह देते रहे
धुँए का रुख , आसमान को
हवा की जरूरत हर कहीं
हवाओं का हिस्सा बन जाते गर
जश्न होता हर घड़ी और हर कहीं