लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
मत भोंको सीने में खन्जर
टूटे लम्हे , रूठा पिन्जर
कितनी बातेँ बदल गईं हैं
कहाँ रुका है कोई मन्जर
कौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
क्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
1 दिन पहले
लाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
Phir ekbaar...kya gazab likh gayeen aap!
कौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
जवाब देंहटाएंक्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर
कितनी सुन्दर पंक्तियाँ है ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
लाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
kya baat hai, chha gaye aapke shabd!!
लाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर..
Waah bahut khoobsoorat abivyakti.......
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंनीरज
@--कितनी बातेँ बदल गईं हैं
जवाब देंहटाएंकहाँ रुका है कोई मन्जर...
वक़्त रुकता नहीं है , उसके साथ बहुत कुछ निरंतर बदलता रहता है ।
सुदर रचना
बधाई
.
sachmuch koi manjar kahan rukta hai.. badhiya kavita.. badhiya geet..
जवाब देंहटाएंकौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
जवाब देंहटाएंक्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर
बहुत सुंदर..... प्रभावी अभिव्यक्ति
सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंलाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन
वाह क्या बात है..
बेहतरीन पंक्तियाँ...
ati suunder rachna..
जवाब देंहटाएंकौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
जवाब देंहटाएंक्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर
waah - waa !
bilkul pte ki baat
sundar kaavy.. !!
लाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
यह जीवन, जड़-चेतन सभी के लिए मृग मरीचिका ही तो है।
इस सुंदर काव्यकृति के लिए बधाई।
शारदा जी बहुत सुन्दर बा को सुन्दर शब्दों मे पिरो दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंजो आपने मे एक गम्भीर संदेश समाहित किये हुये है ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकितनी बातेँ बदल गईं हैं
जवाब देंहटाएंकहाँ रुका है कोई मन्जर...
ekdam sach hai.....
"bahut achhee prastuti.
जवाब देंहटाएंलाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
इसी प्यास का नाम ज़िन्दगी है !
सुन्दर,भावपूर्ण रचना के लिए बधाई !
लाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
.....इस सुंदर काव्यकृति के लिए बधाई।
Wah... Bahut Khoob..
जवाब देंहटाएंIndian Sushant
आदरणीया शारदा जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
लाख सीपियां मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूंढ़ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
आहाऽऽह ! क्या अद्भुत शब्द संयोजन !
कुछ कुछ पहेलीनुमा सा
बचपन के कुछ खेल भी याद हो आए …
हरा समंदर
गोपी चंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी ?
बहुत सुंदर !
तीन दिन पहले प्रणय दिवस भी तो था मंगलकामना का अवसर क्यों चूकें ?
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं !♥
♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
स्त्री को नमन करती एक रचना
जवाब देंहटाएंhttp://rajey.blogspot.com/ पर
लाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर ...
Vaah ... kya gazab andaaz hai rachna ka ...
"लय लागी है किस से अन्दर"- यही वह लय है, जीवन को अनुप्राणित करती है. अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान
जवाब देंहटाएंशारदा जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
कम-से-कम सागर की बैचैनी का कारण तो मैं सुझा सकता हूँ, आपकी अनुमति से:
अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथों से निकल जाता.
बुलाने पर कभी तेरे, मैं चाह कर भी ना आ पाता.
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है.
साहिल लाख नहीं चाहे, मैं रह-रह के भिगोता हूँ.
आशीष
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लम्हा!!!
लेखन का सुन्दर प्रयास
जवाब देंहटाएंलाख सीपियाँ मोती अन्दर
जवाब देंहटाएंफिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
शारदा जी ये आपका अपना हुनर है ....
इन चार पंक्तियों ने तो मन जीत लिया ....
बहुत खूब ....!!
समन्दर की प्यास वाली बात अच्छी है जैसा कि नदिया हूं फिर भी हूं प्यासी । सीने अन्दर खन्जर घौपने का सिलसिला न जाने कब से चल रहा है और ये मंजर जाकर कहां रुकेगा। लय बनाने के लिये शव्दों का चयन अदभुत यथा अन्दर,समन्दर,बंदर,खंजर पिंजर मंजर सिकंदर कलंदर बहुत उम्दा ।
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