मंगलवार, 14 जून 2011

सब फ़ानी ही लगे

जिन्दगी भी फ़ानी ही लगे
बारूद के ढेर पर कोई कहानी ही लगे

फूलों को बोना भी जरुर
काँटों में इनकी महक ज़िन्दगानी ही लगे

तोड़ कर तारे तो मैं ले आऊँ
जो मेरे हाथ कोई मेहरबानी ही लगे

न आए कोई तो क्या कीजे
दिल जलाना भी नादानी ही लगे

वक्त के हाथ हैं तुरुप के मोहरे
पत्तों की बाज़ी भी आसमानी ही लगे

भस्म कर देती है चिन्गारी भी
राख के ढेर तले आग पुरानी ही लगे

छाछ भी फूँक के ही पीता है
जले दूध के को सब फ़ानी ही लगे

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल.... हर शेर में वज़न है...

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  2. फूलों को बोना भी जरुर
    काँटों में इनकी महक ज़िन्दगानी ही लगे

    वाह बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है।

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  3. जिन्दगी भी फ़ानी ही लगे
    बारूद के ढेर पर कोई कहानी ही लगे

    भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति...

    ----देवेंद्र गौतम

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  4. भस्म कर देती है चिन्गारी भी
    राख के ढेर तले आग पुरानी ही लगे

    क्या बात है। बहुत बढि़या

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  5. भस्म कर देती है चिन्गारी भी
    राख के ढेर तले आग पुरानी ही लगे ...

    बहुत खूब...लाज़वाब गज़ल ..

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  6. भस्म कर देती है चिन्गारी भी
    राख के ढेर तले आग पुरानी ही लगे ..

    वाह बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है।

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  7. जिन्दगी भी फ़ानी ही लगे
    बारूद के ढेर पर कोई कहानी ही लगे

    फूलों को बोना भी जरुर
    काँटों में इनकी महक ज़िन्दगानी ही लगे.

    सारा जीवन दर्शन डाल दिया है इस गज़ल में. बहुत गहरी बातें. मुबारक हो शारदा जी.

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  8. भस्म कर देती है चिन्गारी भी
    राख के ढेर तले आग पुरानी ही लगे
    बहुत खूब शारदा जी - अच्छी प्रस्तुति
    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  9. ये लाइन बहुत अच्छी लगी.....

    वक्त के हाथ हैं तुरुप के मोहरे
    पत्तों की बाज़ी भी आसमानी ही लगे

    भस्म कर देती है चिन्गारी भी
    राख के ढेर तले आग पुरानी ही लगे
    ...आभार

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  10. ये दिल पुराने जख्म से बेजार तडपे
    ज्यों राख के नीचे दबे अंगार तडपे
    बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई\

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  11. वक्त के हाथ हैं तुरुप के मोहरे
    पत्तों की बाज़ी भी आसमानी ही लगे
    ~~~~~~क्या बात है!बहुत खूब!

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं