सोमवार, 19 नवंबर 2012

दूर जहाँ तक खड़ी है रात


जल रे दिए तू , लम्बी ज्योति 
पहुँच वहाँ , दूर जहाँ तक खड़ी है रात 

मिट्टी की मैं , तेल है तेरा 
सुख दुख सारा , खेल है तेरा 
मेरे दिल की क्या है औकात 


जल रे दिए तू , लम्बी ज्योति 
पहुँच वहाँ , दूर जहाँ तक खड़ी है रात 

जग चिड़िया का रैन बसेरा 
जोगी वाला अपना फेरा 
कैसे दूँ हालात को मात 


जल रे दिए तू , लम्बी ज्योति 
पहुँच वहाँ , दूर जहाँ तक खड़ी है रात 

हाथ पकड़ कर चलूँ मैं तेरा 
धो डाले जो पथ का अँधेरा 
सुबह सी है तेरी बात 


जल रे दिए तू , लम्बी ज्योति 
पहुँच वहाँ , दूर जहाँ तक खड़ी है रात 


8 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

मिट्टी की मैं , तेल है तेरा
सुख दुख सारा , खेल है तेरा
मेरे दिल की क्या है औकात
Behad sundar!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

जल रे दिए तू , लम्बी ज्योति
पहुँच वहाँ , दूर जहाँ तक खड़ी है रात
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना..
:-)

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
हाथ पकड़ कर चलूँ मैं तेरा
धो डाले जो पथ का अँधेरा
सुबह सी है तेरी बात

बहुत खूबसूरत...
सादर
अनु

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी रचना
बहुत सुंदर

अरुन अनन्त ने कहा…

वाह क्या बात है बेहद उम्दा प्रस्तुति
अरुन शर्मा - www.arunsblog.in

नीरज गोस्वामी ने कहा…

हमेशा की तरह लाजवाब रचना...बधाई

नीरज

प्रेम सरोवर ने कहा…

प्रशंसनीय। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

बेनामी ने कहा…

bahut khoob kaha hein...
सुबह सी है तेरी बात .....