बुधवार, 30 जनवरी 2013

सामाँ होता तो

सपना होता तो उड़ान भी होती 
रेला होता तो लगाम भी होती 

इक चुप सी लगी है जाने 
बात होती तो जुबान भी होती 

वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये 
ठहरे होते तो थकान भी होती 

क्यूँ आहों को सजाये बैठे हैं 
सामाँ होता तो दुकान भी होती 

बस्ती से ज़ुदा वीरान है मस्ज़िद 
मुल्ला होता तो अज़ान भी होती 

9 टिप्‍पणियां:

अरुन अनन्त ने कहा…

वाह बेहद शानदार अशआर हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बढ़ियाँ गजल...
:-)

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बढ़ियाँ गजल...
:-)

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये
ठहरे होते तो थकान भी होती

बहुत सुन्दर लिखा है.

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव...

वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये
ठहरे होते तो थकान भी होती

सभी शेर बहुत अच्छे लगे, शुभकामनाएँ.

Alpana Verma ने कहा…

इक चुप सी लगी है जाने
बात होती तो जुबान भी होती
वाह!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

कार्य-कारण का अनूठा संयोग ही तो है यहाँ!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये
ठहरे होते तो थकान भी होती ..

क्या बात है ... सच को कहने का निराला अंदाज़ लाजवाब है आपका ...

शारदा अरोरा ने कहा…

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ...