शनिवार, 11 अप्रैल 2020

बेगाने हुए


अपने ही घर में बेगाने हुए 
उम्र का कौन सा पड़ाव है , के अफ़साने हुए 

गुजर जायेगी उम्र तो यूँ ही 
अपने सावन तो गुजरे ज़माने हुए 

मिलते रहते हैं ज़िन्दगी से अक्सर 
वरना भूल जायेंगे मुस्कराना भी , के सयाने हुए 

नहीं जानते के किसको क्या पढायें हम 
ये दुनिया के सबक हिला गये हैं ,के अल्हदा ठिकाने हुए 

हँस लेते हैं हम तो खुद पर ही 
ग़मज़दा हैं या गम से ज़ुदा , हाय हम भी दीवाने हुए 

बेटे के घर में माँ-बाप जब मेहमान लगने लगें 
ये दस्तूर है ज़िन्दगी का , समझो के अब पुराने हुए 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 12 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं