ग़मगीन ही सही , जो तुम्हें पसन्द हो , वो गीत अक्सर गुनगुनाया करो
वक़्त के साथ-साथ तुम भी तो मुस्कराया करो
वक़्त के फेर में उलझ जाता है हर कोई
तुम जरा वक्त से परे हो कर , ज़िन्दगी को सजाया करो
कौन जाने कब बदल जायेगा मौसम का मिजाज
तुम इस तरह भी फिजाँ को बुलाया करो
आईना यूँ भी हम से कहता है , तू जो सोचता है
दिखता है , खुद को यूँ भी न भुलाया करो
आह से भी तो उपजता है गान
गाने लगती है सारी कायनात , ये कभी न भुलाया करो
तुम गुनगुनाओ के शब हो या सहर
सूरज ने कभी छुट्टी न ली , उसे रोज बुलाया करो
वक़्त के साथ-साथ तुम भी तो मुस्कराया करो
वक़्त के फेर में उलझ जाता है हर कोई
तुम जरा वक्त से परे हो कर , ज़िन्दगी को सजाया करो
कौन जाने कब बदल जायेगा मौसम का मिजाज
तुम इस तरह भी फिजाँ को बुलाया करो
आईना यूँ भी हम से कहता है , तू जो सोचता है
दिखता है , खुद को यूँ भी न भुलाया करो
आह से भी तो उपजता है गान
गाने लगती है सारी कायनात , ये कभी न भुलाया करो
तुम गुनगुनाओ के शब हो या सहर
सूरज ने कभी छुट्टी न ली , उसे रोज बुलाया करो
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
01/03/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
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धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवक़्त के फेर में उलझ जाता है हर कोई
तुम जरा वक्त से परे हो कर , ज़िन्दगी को सजाया करो
बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति,
सुन्दर रचना
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