हिन्दू होना या मुसलमाँ होना
मजहब से ऊपर है इन्साँ होना
वतन वतन है , जड़ें तेरी
मुश्किल है जमीँ से ज़ुदा होना
आदमी आदमी को सहता कब है
बहुत मुमकिन है ,हस्ती का गुमाँ होना
घर को साबुत रखने की कोशिश में
होना पड़ता है अना को फना होना
खून का रँग भी एक ही है
किसने समझा है दर्दे-अहसास का ज़ुबाँ होना
सुकूने-दिल ही सही राह का पता देगा
किसी की बाजू बनना ,काँधा होना
न दोहराना तारीखों को फिर से
मुश्किल है इतिहास को भुला पाना
मजहब से ऊपर है इन्साँ होना
वतन वतन है , जड़ें तेरी
मुश्किल है जमीँ से ज़ुदा होना
आदमी आदमी को सहता कब है
बहुत मुमकिन है ,हस्ती का गुमाँ होना
घर को साबुत रखने की कोशिश में
होना पड़ता है अना को फना होना
खून का रँग भी एक ही है
किसने समझा है दर्दे-अहसास का ज़ुबाँ होना
सुकूने-दिल ही सही राह का पता देगा
किसी की बाजू बनना ,काँधा होना
न दोहराना तारीखों को फिर से
मुश्किल है इतिहास को भुला पाना
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 06 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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