सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

तुम्हारे आने से



वैलेंटाइन डे में पवित्रता का रँग भरिये ...



मैंने पूजा की थाली से , प्रसाद सा पाया है तुम्हें
सर माथे से लगा कर , किसी दुआ सा अपनाया है तुम्हें

गुजर रही थी जिन्दगी यूँ ही
तुम्हारे आने से , सुरूर सा आया है हमें

चेहरा तुम्हारा यूँ भी अक्सर
हथेलियों में चाँद सा नजर आया है हमें

तन्हाइयों में भी साथी तुम हो
ज़ुदा चलना तुम से , कब रास आया है हमें

फूलों की बगिया से उठ कर
कौन आया है फिजाँ में , गुरूर आया है हमें

हाथों में उम्मीदों के दिए रक्खे
इश्क लौ सा जगमगाता हुआ , नजर आया है हमें

मैंने पूजा की थाली से , प्रसाद सा पाया है तुम्हें
सर माथे से लगा कर , किसी दुआ सा अपनाया है तुम्हें

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

तुम श्याम देख लेना

अँधेरे से जब मैं गुजरूँ
तुम श्याम देख लेना
ढूँढे से भी मैं पाऊँ
जब कोई किरण कहीं ना
तुम लाज मेरी रखना

तपतीं हैं मेरी राहें
साया न सिर पे पाऊँ
जब घाम से मैं गुजरूँ
तुम लाज मेरी रखना

विरहन सी मैं भटकती
टकराती फिर रही हूँ
जब श्याम वन से गुजरूँ
तुम लाज मेरी रखना

तुझको खबर रही है
नजरों से है क्यों ओझल
इस दौर से मैं गुजरूँ
विष्वास मेरा रखना

अँधेरे से जब मैं गुजरूँ
तुम श्याम देख लेना
ढूँढे से भी मैं पाऊँ
जब कोई किरण कहीं ना
तुम लाज मेरी रखना

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

खिजाँ का मौसम

टूटे हुए दिल से भला क्या पाओगे
खिजाँ का मौसम किस तरह निभाओगे

इक कदम भी भारी है बहुत
जंजीरों में उलझ , न चल पाओगे

रुका है वक्त क्या किसी के लिए
सैलाब मगर ठहरा हुआ ही पाओगे

ठण्डी साँसें हैं पुरवाई नहीं
सहराँ की हवाओं में झुलस जाओगे

जीती-जागती बस्ती में मुर्दा है कोई
मरघट में हलचल का पता पाओगे

हमने चरागे-दिल से कहा
सहर तलक जलने की सजा पाओगे

परछाइयों से डरते हो
शबे-गम किस तरह निभाओगे

कतरा-कतरा ग़मों को पीना है
हलक से ज़िन्दगी कैसे उतार पाओगे

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मेरी बात और है

तुम जो चाहे सजा दे लो
मेरी बात और है , मैंने तो मुहब्बत की है

चाँदनी रात का भरम ही सही
दिल जला कर रौशनी की है

रूठ कर बैठा है मेरे घर में कोई
बन्द दरवाजों से मिन्नत की है

जिन्दगी यूँ भी गुजर जाती है
वीरानों से भी दोस्ती की है

हाले-दिल किस को सुनाने लगे
सजा में क्या कोताही की है

सह तो लेते हैं खुदा का करम
आदमी का करम , खुदा की मर्जी ही है

तुम जो चाहे सजा दे लो
मेरी बात और है , मैंने तो मुहब्बत की है

रविवार, 11 दिसंबर 2011

यूँ तो हालात ने

यूँ तो हालात ने हमसे दिल्लगी की है
जीने का शउर सिखाना था , कुछ इस अन्दाज़ में गुफ्तगू की है

कोई एक तो होता हमारा गम -गुसार
हाय नायाब सी शै की जुस्तज़ू की है

अपने जख्मों की परवाह किसे
उसकी आँख में आँसू , फिर कोई रफू की है

दुनिया नहीं होती सिर्फ बुरी ही बुरी
उसी दुनिया से किसी और ही दुनिया की आरज़ू की है

हमको मालूम नहीं राग क्या है रागिनी क्या है
काले सफ़ेद सुर ज़िन्दगी के , ताल देने को दू-ब-दू की है

यूँ तो हालात ने हमसे दिल्लगी की है
जीने का शउर सिखाना था , कुछ इस अन्दाज़ में गुफ्तगू की है

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

ख़म का पता

जाने कब सूरज मेरे दरवाजे पे उगेगा
हसरतों की देहरी पर कोई फूल खिलेगा

क्यों नाराज होऊँ मैं इन्तज़ार की शब से
के अहले-सफ़र भी मुश्किल से कटेगा

स्याह अन्धेरे में किधर चलना है
सिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा

चलने को कोई बात भी चाहिए के
रौशनी को चरागे-दिल ही जलेगा

दम कितना है ख़्वाबों में क़दमों में
इस ख़म का पता भी सुबह ही चलेगा

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

सौगात

फूलों में उलझे तो पड़ते नहीं हैं पाँव ज़मीं पर
काँटों में उलझे तो , ज़मीं बचती ही नहीं है क़दमों तले

ज़िन्दादिली तो हिन्दी में भी छलकती है
ये वो भाषा है जो ज़रुरी है सीखने के लिये

बहुत चाहा कि लिखूँ खुशियों पर , हैरानियों पर
बेबसी , वीरानियों की सौगात हैं मेरी नज्में

है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने

ज़िन्दगी जलाती है तो राख के ढेर में बचाती इतना
कलम कागज़ थमा कर , दुनिया भर को सुनाती अफ़साने अपने