बुधवार, 19 जनवरी 2011

रग-रग में धूप समाई न

आ बैठे निशाँ भी चेहरे पर 

रग-रग में धूप समाई न 


हम वादा कर के भूल गए 

खुद से भी हुई समाई न  


क्यूँ जाते हैं उन गलियों में 

पीछे छूटीं , हुईं पराई न 


ठहरा है सूरज सर पर ही 

चन्दा की बारी आई न 


सरकी न धूप , रुका मन्जर 

आशा से हुई सगाई न 


न कोई नींद , न कोई छलाँग 

पुल सी कोई भरपाई न 


दर्द है तो है गमे-तन्हाई भी 

काँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न

16 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

दर्द है तो है गमे-तन्हाई भी
काँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न

ओह! बहुत दर्द भरा है……………सुन्दर भावाव्यक्ति।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut khub........:)
kya kahun, samajh nahi pa raha...bas ek pyari se rachna hai, yahi laga........

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

शारदा जी, जीवन के विभिन्‍न रंगों को आपने अपने काव्‍य में बखूबी उतार दिया। बधाई।

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ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्‍य का काम है ?

Kunwar Kusumesh ने कहा…

vah ji vah.
kya baat hai.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

न कोई नींद , न कोई छलाँग
पुल सी कोई भरपाई न

बहुत खूब.....

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

शारदा जी ,बहुत सुंदर !

ठहरा है सूरज सर पर ही
चन्दा की बारी आई न

वाह !

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
राजभाषा हिन्दी
विचार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहरे भाव ..अच्छी प्रस्तुति

उम्मतें ने कहा…

आज हमें ज़ाकिर अली रजनीश से सहमत मानियेगा !

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

सुन्दर रचना....

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत गहरी बातें जीवन के अनेक रंगों से सराबोर प्रस्तुति

mridula pradhan ने कहा…

bahut achcha likhi hain.

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें

ZEAL ने कहा…

बेहद सुन्दर प्रस्तुति !

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

दर्द है तो है गमे-तन्हाई भी
काँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न

शारदा जी, बहुत अच्छा लिखा है....
सुंदर अभिव्यक्ति

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया शारदा अरोरा जी
सादर अभिवादन !

अच्छी रचना है ।
आ बैठे निशाँ भी चेहरे पर
रग-रग में धूप समाई न

बहुत ख़ूब !

हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार